शासकीय संपत्ति व खंभों पर बैनर-पोस्टर, उड़ा रहे आचार संहिता का मखौल...

नगरीय निकाय चुनाव की आचार संहिता का पालन कराने को लेकर जिम्मेदार अधिकारी कितने सजग हैं, यह छोटी सड़कों-चौराहों और बस्तियों में देखा जा सकता है। यहां बिजली व टेलीफोन के खंभों और ट्रांसफॉर्मर जैसी शासकीय संपत्ति पर बैनर-पोस्टर और होर्डिंग्स बड़े पैमाने पर टंगे हुए हैं। बस्तियां तो त्योहारों की तरह चुनाव चिह्नों के पर्चों वाली झालरों से सजी हैं। हैरत है कि जिला प्रशासन व नगर पालिका के अफसरों और दरोगा की नजर इन पर अब तक नहीं पड़ रही। कहने को तो नगरीय निकाय चुनाव की आचार संहिता का शहर में सख्ती से पालन करवाया जा रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। भाजपा हो या कांग्रेस फिर बागी निर्दलीय हर किसी ने बिजली व टेलीफोन के खंभों पर अपनी पार्टी के झंडे-बैनर व पोस्टर लगा रखे हैं। ऐसे में नगर पालिका चुनाव की आचार संहिता का शहर में किस हद तक पालन किया जा रहा है, यह बस्तियों में साफ देखा जा सकता है। जाहिर है, सरकारी संपत्ति पर चुनाव प्रचार सामग्री लगाकर सत्तापक्ष से लेकर विपक्ष व अन्य पार्टियां आचार संहिता का मखौल उड़ाने में लगी हैं। वहीं जिम्मेदार अफसर आंख मूंद कर बैठे हैं।

बस्तियों में तो खंभों के जरिये ही हो रहा प्रचार...कॉ

लोनियों और सड़कों पर तो आचार संहिता का उल्लंघन देखा ही जा सकता है, लेकिन सबसे ज्यादा खराब हालत बस्तियों की है। यहां तो जैसे बिजली के खंभों के जरिए ही प्रचार-प्रसार हो रहा है। इन खंभों पर होर्डिंग, झंडे तो टांगे ही गए हैं, साथ ही चुनाव चिह्न के पर्चों वाली झालर भी बांध दी गई हैं। एक खंभे से दूसरे तक बंधी इन झालरों से ये बस्तियां पटी पड़ी हैं। इतना सब कुछ होने के बावजूद न कोई कार्रवाई की जा रही है, न ही इन्हें हटाने का प्रयास किया जा रहा है। साथ ही शासकिय खंभे से लेकर शासकिय भवन तक अछुते नही है।

ये तो सिर्फ बानगी है...

चुनावी मौसम में शहर के कई हिस्सों का लगभग यही हाल है। राम कृष्ण नगर, गाेपाल काॅलाेनी, विवेकानंद कालाेनी, कालका माता राेड़, हुड़ा, मेघनगर नाका, कुम्हार वाड़ा, भाेई बाड़ा जैसे कई क्षेत्रों में भी शासकीय संपत्ति का चुनाव प्रचार के लिए खुलेआम इस्तेमाल हो रहा है। डीआरपी से राजवाड़ा जाने वाली मुख्य सड़क पर भी बिजली के खंभों पर बैनर, पोस्टर, झंडे टांग दिए गए हैं।

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