संता-बंता - करेरा में खुला था राज, अब झाबुआ में फिर वही अंदाज...

संता और बंता, दोनों अच्छे दोस्त थे। एक दिन संता ने बंता से पूछा, "यार, ये झाबुआ में कौन सी नई आफत आ गई है...? सुना है वहां की महिला बाल विकास विभाग में भूचाल आया हुआ है..."
बंता हंसते हुए बोला, "अरे भाई, आफत नहीं, एक 'मैडम' आई हैं, जिनका नाम सुनते ही लोगों के पसीने छूट जाते हैं। नाम है प्रियंका बुनकर, और ये पद हैं परियोजना अधिकारी, झाबुआ लेकिन काम… वो तो कलेक्टर भी देखकर दंग रह जाएं..."

संता चौंक गया, "अच्छा... ऐसा क्या कर दिया मैडम ने...?"

बंता गंभीर होते हुए बोला, "भाई, जहां पैसा दिखता है, वहां इनकी नजर लग जाती है। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, सहायिकाओं और सुपरवाइजरों का जीना हराम कर दिया है। कहते हैं कि इनके पति भी घर पर बैठकर पूरा 'कलेक्शन प्लान' तैयार करते हैं, और अगले दिन मैडम उसे अमल में ले आती हैं..."

संता सोच में पड़ गया, "मतलब पूरा 'घर-घर वसूली अभियान' चल रहा है....?"

बंता ने सिर हिलाया, "बिल्कुल... जहां पैसा दिखा, वहां डंडा चला। जो इनके रास्ते में आया, उसे हटा दिया गया। और जो 'लक्ष्मी दर्शन' कराने को तैयार हुआ, वो कुर्सी पर बना रहा...."

संता को कुछ याद आया, "अरे, ये वही मैडम हैं ना जो पहले शिवपुरी करेरा में थीं...? वहां भी यही कांड कर रही थीं...? तब तो महिला विकास विभाग करेरा समिति की अध्यक्ष रामजूराजा पति सुरेन्द्र सिंह चाैहान और वही के विधायक रमेश चन्द्र खटीक ने अलग-अलग मामलों में इनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया था..."

बंता मुस्कुराया, "बिल्कुल सही पकड़ा! वहां भी भर्ती घोटाले में इनका नाम आया था। कहते हैं कि आंगनबाड़ी सहायिकाओं की भर्ती में पैसे लिए जा रहे थे। ऊपर से धमकी देने की भी पूरी ट्रेनिंग है इनके पास। एक बार तो आंगनबाड़ी की सरकारी दवाइयां किसी किसान के खेत में गड़ी मिलीं, और जब उसने शिकायत की, तो उल्टा उसे ही केस में फंसाने की धमकी मिल गई... विडियाें भी वायरल हुआ था..."

संता ने सिर पीट लिया, "मतलब यहां भी वही खेल दोबारा..."

बंता ने गहरी सांस ली, "हां भाई, झाबुआ में भी वही चल रहा है। लोग डरे हुए हैं, कोई इनसे पंगा नहीं लेना चाहता। ऊपर से मैडम की पहुंच इतनी ऊपर तक है कि अधिकारी भी इनके सामने कुछ नहीं बोलते..."

संता गुस्से में आ गया, "यार, अगर समय रहते कुछ नहीं किया गया, तो ये सब समेटकर निकल जाएगी और बाकी लोग फंसे रहेंगे..."

बंता ने सहमति में सिर हिलाया, "बिल्कुल... अब देखना ये है कि झाबुआ में कोई नया 'रामजूराजा देवी या विधायक खटीक जैसा' काेई आता है या नहीं, जो इनके खिलाफ आवाज उठा सके...."

संता और बंता की बातें खत्म हुईं, लेकिन झाबुआ की कहानी अभी बाकी है…
(अगले अंक में और खुलासा...)

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

"मैं अब नहीं मिलूंगी..." झाबुआ की कनक पाटीदार का दर्दभरा वीडियो वायरल - क्या एक और बेटी सिस्टम से हार गई...?

झाबुआ के फॉरेस्ट कॉलोनी में तेंदूपत्ता अधिकारी ने फांसी लगाकर की आत्महत्या, पुलिस मौके पर मौजूद

झाबुआ में मिलावटी चांदी की बिक्री, प्रशासन से सख्त कार्रवाई की मांग