डाक्टर कटारा की 'बेखुदी' का इलाज कौन करेगा...? बीएमओ की कुर्सी गई, साहब की टेंशन बढ़ी...
डाक्टर साहब की 'कटार' और 'मिशन बीएमओ... ऋतिक विश्वकर्मा की कलम सें...
पेटलावद में इन दिनों एक नई 'मेडिकल थ्रिलर' चल रही है, जिसका हीरो खुद को समझ रहे हैं डाक्टर सुरेश कटारा... जी हां, वही जो पहले बीएमओ हुआ करते थे, लेकिन उनकी ‘प्रेस्क्रिप्शन’ में इतनी गलतियां निकल आईं कि कलेक्टर साहिबा ने ‘डिस्पेंसरी’ से बाहर कर दिया।
अब हुआ यूं कि डाक्टर कटारा साहब को जैसे ही बीएमओ पद से ‘डिस्चार्ज’ किया गया, वो तिलमिला गए। वैसे ताे बीएमओ पद कोई ‘कोल्ड ड्रिंक’ नहीं है कि हाथ से छूट जाए और दूसरा ले आएं, लेकिन कटारा साहब ने इसे ‘पारिवारिक विरासत’ समझ लिया था। जैसे ही उनकी जगह डाक्टर अनिल राठौर की ‘नियुक्ति’ हुई, कटारा साहब का ‘ब्लड प्रेशर’ हाई हो गया। फिर क्या था, उन्होंने अपने ‘डाक्टर गैंग’ के साथ कलेक्टर साहिबा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
अब पेटलावद में ऐसा माहौल बन गया कि जहां देखो वहां 'कटारा चर्चा'। पहले तो डाक्टर साहब को समझ नहीं आया कि क्या करें, लेकिन फिर उन्होंने ‘षड्यंत्र चिकित्सा’ अपनाने का फैसला किया। पहले खुद को ‘मासूम पीड़ित’ साबित करने का नुस्खा आजमाया, फिर नए बीएमओ के खिलाफ ‘कंपाउंडर प्लान’ बनाने लगे। लेकिन अफसोस, उनकी ‘दवा’ उल्टी पड़ गई!
अब आलम यह है कि जिस तरह डाक्टर कटारा ने 'शिकायतों की दवा' दी थी, वही दवा अब उनके खुद के खिलाफ असर दिखाने लगी है। स्थानीय संगठन, आरटीआई कार्यकर्ता, और अधिकारी, सब मिलकर उनकी 'जांच' में लगे हैं। ऊपर से ‘आय से अधिक संपत्ति’ का इंजेक्शन भी तैयार हो चुका है!
इस पूरे घटनाक्रम को देखकर कहा जा सकता है कि डाक्टर कटारा का ‘बीएमओ प्रेम’ कुछ ज्यादा ही गहरा था। मगर अफसोस, अब उनके लिए ‘अस्पताल का बेड’ तो है, लेकिन बीएमओ की कुर्सी नहीं! आखिर में पेटलावद की जनता एक ही चीज़ पूछ रही है—"डाक्टर साहब, अब अगली ‘प्रीस्क्रिप्शन’ क्या है...?"
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