झाबुआ में SDM के सरकारी निवास पर दमकल वाहन से पानी की टंकी काे भरवाया गया, पहले भी सामने आ चुका है ऐसा मामला...
शासकीय संसाधनों का निजी इस्तेमाल...
झाबुआ (ऋतिक विश्वकर्मा)। प्रशासनिक लापरवाही और सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग का एक गंभीर मामला झाबुआ से सामने आया है। झाबुआ के वर्तमान एसडीएम भास्कर गाचले के ऑफिसर कॉलोनी स्थित शासकीय बंगले में आज नगर पालिका परिषद झाबुआ की दमकल वाहन द्वारा जलापूर्ति की गई। यह दृश्य सुबह 11:42 बजे गूंज़-ए-झाबुआ द्वार साफ तौर पर देखा गया, जिसमें दमकल वाहन अधिकारी के परिसर में खड़ा होकर पानी की टंकी भरता दिखा। दमकल वाहन की तैनाती आमतौर पर अग्निशमन जैसी आपात स्थितियों के लिए की जाती है, लेकिन यहां इसका उपयोग एक सरकारी अधिकारी के निजी निवास पर घरेलू जलापूर्ति के लिए किया गया — यह न केवल गंभीर अनियमितता है, बल्कि सार्वजनिक संसाधनों के प्रति गैरजिम्मेदाराना रवैये का उदाहरण भी है।स्थानीय लोग बोले “आग लग जाए तो दमकल कहाँ होगी...?”
इस दृश्य को देखकर वहां से गुजर रहे नागरिकों ने आश्चर्य और नाराजगी जताई। एक राहगीर ने व्यंग्य में कहा, "अब घर की टंकी भरवाने के लिए भी दमकल आ रही है, अगर शहर में कहीं आग लग जाए तब क्या होगा...?"
एक अन्य व्यक्ति ने सवाल उठाया, "क्या फायर ब्रिगेड अब वीआईपी जल सेवा में बदल दी गई है...?"
पहले भी हो चुका है ऐसा मामला
यह पहली बार नहीं है जब दमकल वाहन का इस तरह से दुरुपयोग हुआ हो। कुछ समय पहले भी इसी ऑफिसर कॉलोनी में स्थित जिला जनसंपर्क कार्यालय के एक कर्मचारी के निवास पर दमकल वाहन से रात काे रिमझीम बरसात में ही जल आपूर्ति करते देखा गया था। दोहराव की यह स्थिति इस बात की ओर इशारा करती है कि नगर पालिका झाबुआ द्वारा शासकीय सेवकों को व्यक्तिगत सुविधाएँ देने के लिए फायर ब्रिगेड जैसे संसाधनों का लगातार दुरुपयोग किया जा रहा है।प्रशासन पर उठे सवाल... नियमों का होगा पालन या लापरवाही होगी जारी...?
इस घटना ने प्रशासनिक जवाबदेही पर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या नगर पालिका के पास इस प्रकार के जल आपूर्ति के लिए कोई स्पष्ट आदेश या नीति है...? यदि नहीं... तो किस आधार पर दमकल जैसे अति-महत्वपूर्ण संसाधन को निजी जरूरतों में लगाया गया...?
दमकल वाहन न केवल महंगा संसाधन है, बल्कि इसकी उपलब्धता किसी भी शहर के आपातकालीन तंत्र की रीढ़ होती है। इसका इस प्रकार इस्तेमाल, संभावित संकट की स्थिति में जनता की सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है।
अब आगे क्या...?
अब देखना यह है कि क्या जिला प्रशासन इस मामले की निष्पक्ष जांच कराएगा, या फिर यह मामला भी अन्य उदाहरणों की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा। क्या जिम्मेदार अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा जाएगा...? या फिर यह संस्कृति बन चुकी है कि सरकारी पद मतलब निजी सुविधा...?
इस संबंध में जब हमने संबंधिताें से चर्चा करना चाही ताे काल कट कर दिया गया। जिससे स्पष्ट हाेता है कि अधिकारी अपने पदाें का दुरुपयोग करके नियमाें की अव्हेलना करने से नहीं चुकते है।
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