रामभरोसे आरोग्य मंदिर - बाहर से ‘खुला’, भीतर से ‘ताला’, सेवा कहाँ गुमशुदा...?

✍️ ऋतिक विश्वकर्मा

झाबुआ। आरोग्य की आस्था और योजनाओं के वादों से सजा “आयुष्मान आरोग्य मंदिर” नामक यह भवन झाबुआ के गढ़वाड़ा में खड़ा तो है, लेकिन स्वास्थ्य सेवा देने के बजाय खुद ही सेवा की आस में बैठा लगता है। बाहर से देखकर लगेगा कि शायद खुला होगा... क्योंकि खिड़की खुली मिलती है।

लेकिन जरा पास जाइए - लोहे की चैनल गेट के पीछे मोटा ताला मुस्कुराता मिलेगा – जैसे कह रहा हो, आओ, देखो... लेकिन अंदर मत आओ...

यह दृश्य यहां कोई नई बात नहीं है, यह तो अब सामान्य परंपरा बन चुकी है।
बाहर से खुला, अंदर से बंद – मानो शासन-प्रशासन की नीतियों का जीता-जागता प्रतीक।

अब बात करें यहां पदस्थ सीएचओ (सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी) की – तो वो महोदया झाबुआ शहर में ही विराजती हैं, और स्वास्थ्य केंद्र की जमीन से ज्यादा आवश्यकता उन्हें शहर की हवा लगती है। नियम तो कहते हैं कि आपात स्थिति में रात्रि विश्राम यहीं करें... लेकिन हकीकत कहती है - यहाँ रात क्या, दिन में भी कोई दिखे तो किस्मत समझिए...

क्या कहता है नियम...

समय अनुसार केंद्र खुला हो

कर्मचारी उपस्थित हों

रात्रि विश्राम अनिवार्य हो

क्या दिखता है गढ़वाड़ा में:

 ताले की मौजूदगी

सेवाओं की गैरहाज़िरी

और नियमों की अनदेखी

ग्रामीण आते हैं, गेट देखते हैं, खिड़की से झाँकते हैं - फिर ताला देखकर लौट जाते हैं।

मानो कोई कहता हो... यह आरोग्य मंदिर नहीं, भ्रम मंदिर है...

जिले के अधिकांश आयुष्मान केन्द्रों में यही हालात हैं - अपडाउन करने वाले कर्मचारी मिल जाएंगे, लेकिन उत्तरदायित्व नामक शब्द अब सरकारी फाइलों की शोभा बन चुका है।अब सवाल उठता है:

  • ताले से बंधी सेवा का जवाबदेह कौन है...?
  • झाबुआ शहर में रहकर गढ़वाड़ा की सेहत का इलाज कैसे होगा...?
  • क्या 'रामभरोसे स्वास्थ्य व्यवस्था' ही जिले की नई पहचान है...?

शायद अब समय आ गया है कि जिम्मेदार लोग भी कभी बिना बताए इन केंद्रों का दरवाजा खटखटाएँ - हो सकता है, उन्हें भी ताले की आवाज में जनता की खामोशी सुनाई दे जाए।


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