वो बंदूक की गोली नहीं... हिंदुस्तान की गूंज थी – नाम था चन्द्रशेखर आज़ाद...

23 जुलाई... तारीख वही है, पर हर साल इस दिन इतिहास फिर से सांस लेने लगता है। देशभक्ति की रगों में दौड़ती चिंगारी फिर से धधक उठती है। यह वो दिन है जब भारत माता के सबसे निर्भीक सपूत, "चन्द्रशेखर आज़ाद" का जन्म हुआ था - एक ऐसा नाम जो गुलामी की जंजीरों को तोड़ने की कसम लेकर क्रांति के रण में कूद पड़ा।

जिसने अदालत में कहा – मेरा नाम 'आज़ाद', पिता का नाम 'स्वतंत्रता'...
1921 का असहयोग आंदोलन... उम्र सिर्फ 15 साल, लेकिन लहू में बगावत खौल रही थी। पुलिस ने जब अदालत में पेश किया, तो नाम पूछा गया। उन्होंने गर्जना की:
> "नाम – आज़ाद, पिता का नाम – स्वतंत्रता, और पता – जेल..."
अदालत सन्न रह गई और आज़ादी ने अपनी पहली हुंकार भर दी...

 क्रांति के मैदान का वो सिंह जो कभी पकड़ा नहीं गया...
जब अंग्रेज सरकार सड़कों पर बूटों की गूंज से डर पैदा करती थी, तब आजाद की रिवॉल्वर की आवाज़ उस डर को चीरती थी...

काकोरी कांड (1925) - ब्रिटिश खजाने पर हाथ डालना, उनके दिल में खौफ भरना – यही था आज़ाद का जवाब।

सांडर्स वध (1928) - लाला लाजपत राय की मौत का बदला – न्याय की आग में जलते हुए अंग्रेजों को उनके ही खून से जवाब दिया।

HSRA के सेनापति - भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु जैसे नौजवानों को संगठित किया, उन्हें हथियार दिया, विचार दिया।

शहादत - "आज़ाद" ने खुद को गोली मारी, पर ज़िंदा पकड़ा जाना मंज़ूर नहीं था...
27 फरवरी 1931, अल्फ्रेड पार्क, इलाहाबाद। अंग्रेजों ने घेर लिया था। गोलियों की बौछार के बीच लड़ते रहे, आखिरी गोली बची तो खुद को गोली मार ली – ताकि दुश्मन की हथकड़ी कभी उनकी कलाइयों को छू न सके।

> "आज़ाद था, आज़ाद हूँ, और आज़ाद ही मरूँगा!"
– और उन्होंने वचन निभाया।

भाबरा – अब ‘चन्द्रशेखर आज़ाद नगर’: जहां क्रांति ने जन्म लिया...
मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले का छोटा सा आदिवासी गाँव भाबरा, जाे अब जाना जाता है “चन्द्रशेखर आज़ाद नगर” के नाम से। यहीं पैदा हुआ था वो शेर, जिसने अंग्रेजी सत्ता की नींव हिला दी। वहाँ आज भी गूंजते हैं उनके क़दमों के निशान – एक स्मारक, एक प्रेरणा, एक चिंगारी...

आज की पीढ़ी के लिए आज़ाद एक नाम नहीं, एक प्रेरणा है...
इस आधुनिक भारत में, जब हम कभी-कभी आज़ादी को हल्के में लेने लगते हैं, तब चन्द्रशेखर आज़ाद की कहानी हमें याद दिलाती है कि यह स्वतंत्रता कितने बलिदानों की फसल है। सलाम है उस "आज़ाद" को... जिसकी शहादत ने देश को आज़ादी की लौ सौंपी...

> वो क्रांतिकारी नहीं... एक विचार था।
वो शहीद नहीं... आज़ादी की आग था।
और आज भी हर नौजवान की रगों में जब जोश दौड़ता है, कहीं न कहीं उसका नाम आज़ाद होता है...

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