शिक्षा के मंदिर में शोषण की दीवारें... स्कूल की मैडम ने बच्चों को बनाया मजदूर... प्रशासन मौन...

✍️ ऋतिक विश्वकर्मा


सरकारी स्कूल... नाम सुनते ही मन में जो तस्वीर उभरती है - किताब, शिक्षक, पढ़ाई और भविष्य। लेकिन माधाैपूरा के सरकारी स्कूल में ये तस्वीर कुछ अलग है - यहाँ किताब की जगह बच्चे ईंटें ढो रहे हैं, और भविष्य की जगह बोझ।

जी हाँ... झाबुआ के माधूपूरा में पदस्थ स्कूल की प्रधानाध्यापिका कल्पना त्रिवेदी पर आरोप है कि वह स्कूल में पढ़ने आए मासूम बच्चों से दिनभर मजदूरी जैसा काम करवाती रही हैं। बच्चों से खुलेआम ईंटें उठवाई जा रही हैं, मैदान साफ कराए जा रहे हैं - और सबसे शर्मनाक बात ये कि ये सब हो रहा है शिक्षा के मंदिर में।

जो वीडियो सामने आया है, उसमें एक सीन नहीं... एक सच्चाई चीख रही है...
बच्चे स्कूल यूनिफॉर्म में, मज़दूरी के मूड में हैं। कोई ईंट ढो रहा है, कोई हटा रहा है... और मैडम साहिबा निर्देश दे रही हैं जैसे किसी ठेके की ठिकेदार हों।


प्रिंसिपल का जवाब भी कम दिलचस्प नहीं है...
उन्होंने कहा -

“मैंने सिर्फ 10-12 ईंटें हटवाने को कहा था… ताकि बच्चों को आने-जाने में दिक्कत ना हो… चपरासी से भी काम करवाया है…”

वाह मैडम...
10 ईंटों के लिए बच्चे, और वो भी 8-10 साल के मासूम...?
अगर इतनी ही चिंता थी बच्चों की सुरक्षा की, तो अपने पद की गरिमा दिखाते, खुद हटवाते।
सरकार हर साल लाखों देती है स्कूल मरम्मत और सुविधा के नाम पर - लेकिन अफसोस... वहाँ पैसा दीवारों में नहीं, झूठे बिलों में चिपका दिखता है।


क्या स्कूल अब मज़दूरी केंद्र बनेंगे...?
क्या शिक्षा का अधिकार सिर्फ काग़ज़ी नारा रह गया...?
क्या बच्चे सिर्फ "काम करने वाले हाथ" बनकर रह जाएंगे...?


अब मामला सिर्फ स्कूल का नहीं, पूरे सिस्टम का है...
भील सेना और जयस संगठन ने चेतावनी दी है...

“अगर जल्द ही कल्पना त्रिवेदी को हटाकर उचित कार्रवाई नहीं की गई, तो सड़कों पर उतरकर आंदोलन होगा।”


सवाल प्रशासन से है...

क्या एक वीडियो में बच्चों को मजदूरी करते देखना पर्याप्त नहीं...?
क्या अब भी कोई "जांच कमेटी" बैठेगी या सीधे कार्रवाई होगी...?
या फिर जैसे हर बार... कुछ दिन शांति, कुछ बयान... और फिर वही ढाक के तीन पात...?


गूंज़-ए-झाबुआ का सवाल साफ है...

बच्चों को किताब दो या तसला...?
शिक्षा दो या शोषण...?


इंतजार जवाब का है...
या फिर एक और चुप्पी इतिहास में दर्ज हो जाएगी।

किताब की जगह थमा दी ईंटें... सपनों के पंखों को काट दिया... जिस स्कूल में सीखना था उड़ना... वहीं बचपन को घसीट दिया…

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