कर्ज लिया, कागज बनाए… और फिर किया खेल – FIR से फंसा दिया...

"झाबुआ डायरी"असली कहानी पार्ट - 1

झाबुआ/थांदला। कहते हैं - “सत्य परेशान हो सकता है, पर पराजित नहीं...” पर जब झूठ, रजिस्ट्रियों और FIR की शक्ल में अदालत के दरवाजे खटखटाने लगे, तब सच को भी अपना अस्तित्व साबित करने के लिए कागज और गवाह की जरूरत पड़ने लगती है।

इस बार कहानी महज़ सूदखोरी या एग्रीमेंट की नहीं है, ये कहानी है - उस भरोसे की, जो एक विभागीय संबंध, पारिवारिक निकटता और इंसानी रिश्तों पर टिका था।
लेकिन जब लालच सिर चढ़कर बोला, तो यही भरोसा... एफआईआर की स्याही में घुल गया।


भरोसे का एग्रीमेंट और नियत का फेरबदल...

वह परिवार, जो कभी राणापुर की शांति में रहता था, आज झाबुआ की खबरों का केंद्र बना हुआ है। कभी एक ही सरकारी विभाग में काम करने वाले दो व्यक्तियों का संबंध, अब न्यायालय की देहरी पर “आरोपी और पीड़ित” में बदल चुका है।

कहानी के सूत्र कहते हैं...
रिटायरमेंट के बाद, जो पैसा मेहनत से इकट्ठा हुआ था, उसे निवेश के नाम पर लालच देकर ले लिया गया। कागज बने, दस्तख़त हुए, वादे हुए। पर समय के साथ जब वादा निभाने का वक्त आया, तो नियत बदल गई
और बदल गई पूरे रिश्ते की परिभाषा।


जब एग्रीमेंट से निकला झूठ, और झूठ से बनी FIR...

अब वो पक्ष, जिसने पैसा लिया - खुद को पीड़ित बताने की कहानी रच चुका है।
सहज भाषा में कहें, तो...

“चोरी भी की, और चौकीदारी का भी दावा कर रहे हैं...”

FIR की धारा ऐसी लगाई गई है, मानो सामने वाला किसी अंतर्राष्ट्रीय सूदखोर गिरोह का सदस्य हो। लेकिन जिनके पास सच्चाई के दस्तावेज़ हैं, वो चुप नहीं बैठने वाले।


और जब सच्चाई ने जान ले ली...

ये पहला मौका नहीं है।
हम जब इससे संबंधित और जानकारी जुटाने लगे ताे  सूत्र ये भी बताते हैं कि कुछ वर्ष पूर्व, इन्हीं की मानसिक प्रताड़ना से एक व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली थी।
मामला तूल पकड़ने लगा, तो ब्लडमनी देकर ‘शांति’ स्थापित की गई
सवाल अब यह नहीं कि पैसा क्यों लिया, सवाल यह है कि —

“हर बार पीड़ित ही क्यों मरता है और दोषी बच जाता है...?”


अब जनता पूछ रही है...

  • क्या झूठी एफआईआर, सच्चे कर्ज को छुपा सकती है...?
  • क्या जिनके पास कागज़, एग्रीमेंट, चश्मदीद और सच्चाई है - उन्हें यूँ ही बदनाम किया जाएगा...?
  • और सबसे अहम — क्या पुलिस प्रशासन सच और स्क्रिप्टेड कहानी में फर्क करेगा...?

पार्ट-2 में होगा पर्दाफाश...

“नाम उजागर होंगे, एग्रीमेंट सामने आएंगे, वो रजिस्ट्रियाँ और पैसे जिनकी अदायगी अधूरी है - और वो सच्चे बयान जो अब तक दबे रहे।”

क्योंकि अब मामला पब्लिक कोर्ट में है - और जनता गवाह बनेगी, इंसाफ खुद बोलेगा...


                     ✍️ ऋतिक विश्वकर्मा



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