हरतालिका तीज़ आज... जाने संपूर्ण पुजा विधी एवं कथा...
आज महिलाएं पति की लंबी उम्र की कामना के लिए और लड़कियां अच्छे वर की प्राप्ति के लिए रखेगी व्रत। संपूर्ण विधि एवं कथा...
शिव पार्वती की पार्थिव मूर्ति का पूजन और कथा श्रवण करना हरितालिका तीज में उत्तम माना गया है। ऐसी मान्यता है कि माता पार्वती ने पति रूप में भगवान शिव को पाने के लिए हजारों वर्ष तक तपस्या की थी और भाद्र शुक्ल तृतीया को ही भोलेनाथ ने माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिया और उनसे वर मांगने को कहा। तभी देवी ने उन्हें पति रूप में अपने जीवन में आने का आग्रह किया। उसी समय से सनातन धर्म में सौभाग्यवती महिलाएं सौभाग्य की और अविवाहित कन्याएं मनोवांछित वर की प्राप्ति के लिए हरितालिका तीज का व्रत करती हैं।
इस दिन स्त्रियों को शिव पार्वती के पार्थिव प्रतिमा का पूजन करने के लिए हाथ में जल अक्षत पुष्प आदि लेकर मन में ही शिव पार्वती का स्मरण करते हुए हरितालिका तीज पूजन का संकल्प करना चाहिए। इसके बाद मूर्ति को एक चौकी पर स्थापित करके उसके चारों तरफ केले के खंभे लगाने के बाद उसका षोडशोपचार या पंचोपचार पूजन करना चाहिए।
हरतालिका पूजाविधि
पति-पत्नी के अटूट बंधन के इस पर्व पर महिलाऐं शुद्ध मिट्टी से शिव-पार्वती और श्री गणेश की प्रतीकात्मक प्रतिमाएं बनाकर उनकी पूजा करती हैं। पूजन में रोली,चावल,पुष्प,बेलपत्र,नारियल ,दूर्वा,मिठाई आदि से भगवान का भक्ति भाव से पूजन करें। तीनों देवताओं को वस्त्र अर्पित करने के बाद हरितालिका तीज व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। आरती करने के बाद प्रार्थना करें कि हमारा जीवन भी शिव-गौरी की तरह आपसी प्रेम से सदैव बंधा रहे।
व्रत की कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती अपने कई जन्मों से भगवान शिव को पति के रूप में पाना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने हिमालय पर्वत के गंगा तट पर बाल अवस्था में अधोमुखी होकर तपस्या की थी। माता पार्वती ने इस तप में अन्न और जल का भी सेवन नही किया था। वह सिर्फ सूखे पत्ते चबाकर ही तप किया करती थी।माता पार्वती को इस अवस्था में देखकर उनके माता पिता बहुत दुखी रहते थे। एक दिन देवऋषि नारद भगवान विष्णु की तरफ से पार्वती जी के विवाह के लिए प्रस्ताव लेकर उनके पिता के पास गए। पार्वती जी के पिता ने तुरंत ही इस प्रस्ताव के लिए हां कर दी। जब माता पार्वती को उनके पिता ने उनके विवाह के बारे में बताया तो वह काफी दुखी हो गई।उनकी एक सखी से माता पार्वती का यह दुख देखा नहीं गया और उन्होंने उनकी माता से इस विषय में पूछा। जिस पर उनकी माता ने उस सखी को बताया कि पार्वती जी शिव जी को पति रूप में पाने के लिए तप कर रही हैं। लेकिन उनके पिता चाहते की पार्वती का विवाह विष्णु जी से हो जाए। इस पर उनकी उस सहेली ने माता पार्वती को वन में जाने कि सलाह दी।जिसके बाद माता पार्वती ने ऐसा ही किया और वो एक गुफा में जाकर भगवान शिव की तपस्या में लीन हो गई थी। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का बनाया और शिव जी की स्तुति करने लगी। इतनी कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव ने माता पार्वती को दर्शन दिए और उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया।
पति-पत्नी के अटूट बंधन के इस पर्व पर महिलाऐं शुद्ध मिट्टी से शिव-पार्वती और श्री गणेश की प्रतीकात्मक प्रतिमाएं बनाकर उनकी पूजा करती हैं। पूजन में रोली,चावल,पुष्प,बेलपत्र,नारियल ,दूर्वा,मिठाई आदि से भगवान का भक्ति भाव से पूजन करें। तीनों देवताओं को वस्त्र अर्पित करने के बाद हरितालिका तीज व्रत की कथा सुनें या पढ़ें। आरती करने के बाद प्रार्थना करें कि हमारा जीवन भी शिव-गौरी की तरह आपसी प्रेम से सदैव बंधा रहे।
व्रत की कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती अपने कई जन्मों से भगवान शिव को पति के रूप में पाना चाहती थी। इसके लिए उन्होंने हिमालय पर्वत के गंगा तट पर बाल अवस्था में अधोमुखी होकर तपस्या की थी। माता पार्वती ने इस तप में अन्न और जल का भी सेवन नही किया था। वह सिर्फ सूखे पत्ते चबाकर ही तप किया करती थी।माता पार्वती को इस अवस्था में देखकर उनके माता पिता बहुत दुखी रहते थे। एक दिन देवऋषि नारद भगवान विष्णु की तरफ से पार्वती जी के विवाह के लिए प्रस्ताव लेकर उनके पिता के पास गए। पार्वती जी के पिता ने तुरंत ही इस प्रस्ताव के लिए हां कर दी। जब माता पार्वती को उनके पिता ने उनके विवाह के बारे में बताया तो वह काफी दुखी हो गई।उनकी एक सखी से माता पार्वती का यह दुख देखा नहीं गया और उन्होंने उनकी माता से इस विषय में पूछा। जिस पर उनकी माता ने उस सखी को बताया कि पार्वती जी शिव जी को पति रूप में पाने के लिए तप कर रही हैं। लेकिन उनके पिता चाहते की पार्वती का विवाह विष्णु जी से हो जाए। इस पर उनकी उस सहेली ने माता पार्वती को वन में जाने कि सलाह दी।जिसके बाद माता पार्वती ने ऐसा ही किया और वो एक गुफा में जाकर भगवान शिव की तपस्या में लीन हो गई थी। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का बनाया और शिव जी की स्तुति करने लगी। इतनी कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव ने माता पार्वती को दर्शन दिए और उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया।
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