हजारों लोगों के पलायन से वोटिंग प्रतिशत गिरने का डर, प्रशासन के लिए बड़ी चुनाैती...

गूंज़-ए-झाबुआ। झाबुआ जिले में काम की तलाश में हजारों लोग अन्‍य राज्‍यों में पलायन कर चुके हैं, लेकिन इन लोगों के नाम मतदाता सूची में दर्ज है। यदि ये लोग वोटिंग नहीं करते हैं, तो मतदान प्रतिशत प्रभावित हाे सकता है।
काम धंधे की तलाश में हजारों लोग झाबुआ जिले से पलायन कर चुके हैं। कोई महाराष्ट्र, गुजरात तो कोई राजस्थान के शहरों में जाकर मेहनत मजदूरी कर रहा है। कई गांव तो ऐसे हैं जहां घरों में ताले डले हुए हैं और लोग दूसरे शहरों में परिवारों सहित चले गए हैं।
            अब समय विधानसभा चुनाव मतदान का समीप आ गया है। प्रशासन मतदान के प्रति लोगों को कई आयोजनों के माध्यम से जागरूक कर रहा है। लेकिन पलायन कर गए लोगों की कमी 17 नवंबर को मतदान के समय खल सकती है। क्योंकि सैकड़ों लोग ऐसे हैं जिनके नाम मतदाता सूची में दर्ज हैं लेकिन वह अपने गांवों को छोड़कर पलायन कर गए हैं।
            अगर जिले में पलायन के हालात नहीं होते हैं मतदान का ग्राफ और ऊपर होता। 
            पिछले चुनाव की स्थिति पर नजर डालें ताे वर्ष 2008 में झाबुआ विधानसभा में मतदान का प्रतिशत 54.26% रहा था, जिसके बाद 2013 में मतदान का प्रतिशत बढ़कर 56.69% रहा था, उसके बाद 2018 में मतदान का प्रतिशत और अधिक बढ़कर 65.26 प्रतिशत मतदान था। पश्चात 2019 में झाबुआ विधानसभा के उपचुनाव में मतदान का प्रतिशत में कमी दिखाई दी, जिसमें मतदान का प्रतिशत 61.91% रहा था।
           इसी प्रकार थांदला में 2008 में मतदान का प्रतिशत 71.43 रहा था जिसके बाद 2018 में बढ़कर 81.02% हाेकर वर्ष 2018 में फिर से बढ़कर 87.54 प्रतिशत हुआ था।
           अब पेटलावद विधानसभा के मतदान की बात करें ताे वर्ष 2008 में मतदान 69.35% था, उसके बाद 2013 के चुनाव में 72.91% हाेकर वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में बढ़कर 80.55 प्रतिशत था। 
           देखना यह है कि जिला प्रशासन एवं निर्वाचन सत प्रतिशत मतदान के दावाें पर कितना खरा उतर पातें है, क्यूं कि पलायन करने वाले वाेटर से ही मतदान का प्रतिशत बढ़ता और घटता है। जाे की प्रशासन के सामने सबसे बड़ी चुनाैती है।

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