झाबुआ में फर्जी दस्तावेजों का जाल... पहले गोधरा कांड का आरोपी और अब तस्कर गिरफ्तार
झाबुआ । जिले की दाे अलग-अलग घटनाओ के आराेपीयाें ने शासन-प्रशासन और पुलिस की भूमिका पर सवालिया चिन्ह लगा दिए है।
झाबुआ जिले में दस साल में दाे घटनाओं ने क्षेत्र में फर्जी दस्तावेजों के इस्तेमाल की गंभीर समस्या को उजागर किया है। एक तरफ 2002 में हुए गोधरा कांड के आरोपी हुसैन सुलेमान को 13 साल बाद 2015 में झाबुआ से गिरफ्तार किया गया था, जो यहां फर्जी दस्तावेजों के आधार पर रह रहा था। वहीं, दूसरी तरफ कुख्यात तस्कर सलमान लाला को भी नागदा में गिरफ्तार किया गया, जिसने थांदला में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर पहचान पत्र बनवाए थे और दुबई भागने की फिराक में था।
पहले हुसैन सुलेमान की गिरफ्तारी...
22 जुलाई 2015 को झाबुआ बस स्टैंड पर एक शख्स को गुजरात की स्पेशल क्राईम ब्रांच की टीम ने गिरफ्तार किया था, जिसकी पहचान हुसैन सुलेमान के रूप में हुई थी। हुसैन सुलेमान 2002 में हुए गोधरा कांड का आरोपी था। सुलेमान 13 सालों से गाेधरा से फरार था और झाबुआ में फर्जी दस्तावेजों के सहारे रह रहा था।
अब सलमान लाला की गिरफ्तारी...
नागदा पुलिस ने क्राइम ब्रांच और सायबर सेल की मदद से कुख्यात अंतरराज्यीय तस्कर सलमान लाला को 25 लाख रूपए की ड्रग्स के साथ गिरफ्तार किया है। पुलिसिया कार्रवाई में सामने आया कि सलमान लाला ने झाबुआ जिले के थांदला में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर आधार कार्ड, पासपोर्ट और वोटर आईडी कार्ड बनवाए थे। उसका नाम थांदला के वार्ड 13 की वोटर लिस्ट में भी दर्ज था।
दोनों ही मामलों में फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल...
दोनों ही मामलों में आरोपियों ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर पहचान पत्र बनवाए और इनका इस्तेमाल गलत कामों के लिए किया। हुसैन सुलेमान 13 साल से फरार था और झाबुआ में छुप कर रह रहा था। वहीं, सलमान लाला दुबई भागने की फिराक में था।
जांच की मांग...
हिंदू संगठनों ने जांच की मांग की है। उनका कहना है कि पुलिस की लापरवाही के चलते ही कुख्यात अपराधी खुलेआम घूमता रहा। उन्होंने यह भी मांग की है कि इस बात की जांच की जाए कि किन लोगों ने सलमान लाला को फर्जी दस्तावेज बनवाने में मदद की।
कई सवाल अनसुलझे...
इन दोनों घटनाओं के बाद कई सवाल अभी भी अनसुलझे हैं। जैसे कि हुसैन सुलेमान और सलमान लाला के अलावा भी काेई और अपराधियों काे जिले में पनाहगार है...? इन लाेगाे के फर्जी दस्तावेज बनवाने में किन लोगों ने उसकी मदद की...? इन लाेगाे काे पनाह देने वाले ने जानकारी कैसे छुपाए रखी...? इन सवालों का जवाब तो पुलिस की जांच के बाद ही मिल पाएगा।
दाेनाे ही मामले में स्थानीय लोगों की भूमिका संदिग्ध...
इन दोनों ही मामलों में स्थानीय लोगों की भूमिका भी संदिग्ध नजर आती है। बिना स्थानीय लोगों की मदद के फर्जी दस्तावेज बनवाना संभव नहीं है। ऐसे में पुलिस को इस बात की भी जांच करनी चाहिए कि इन दोनों मामलों में स्थानीय लोगों की क्या भूमिका थी।
पुलिस की कार्यशैली पर सवाल...
इन दोनों घटनाओं ने पुलिस की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। आखिर इतने सालों तक एक कुख्यात अपराधी पुलिस की नजरों से कैसे बचा रहा...? क्या यह पुलिस की लापरवाही का नतीजा है...? या फिर इसके पीछे कोई और वजह है...? पुलिस को अपनी कार्यशैली में सुधार करने की जरूरत है। उन्हें और अधिक सतर्क और सजग रहने की जरूरत है, ताकि ऐसे अपराधियों को जल्द से जल्द पकड़ा जा सके।
Good news Anand Raj Vishwakarma Desai
जवाब देंहटाएंझाबुआ मे भी यूपी बिहार के लोग धंधा करने आए हुए है इनके भी पेपर चेक होने चाहिए झाबुआ शांत प्रिय कस्बा है कही एक लापरवाही से झाबुआ की फ़िज़ा बिगड नहीं जाए 😭
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