स्वतंत्रता संग्राम पर प्रकाशित पुस्तक कलेक्टर कार्यालय झाबुआ में रहस्यमयी तरह से हुई गायब, सूचना आयोग ने जताई नाराजगी
झाबुआ। स्वतंत्रता संग्राम में झाबुआ जिले के क्रांतिकारियों के योगदान पर आधारित एक महत्वपूर्ण पुस्तक कलेक्टर कार्यालय झाबुआ से गायब हो गई है। यह पुस्तक वर्ष 1999 में प्रकाशित हुई थी, लेकिन जब आरटीआई एक्टिविस्ट कैलाश सनोलिया (विश्वकर्मा) ने इसकी जानकारी मांगी, तो प्रशासन ने इसे उपलब्ध कराने में असमर्थता जताई। इस मामले का खुलासा मध्यप्रदेश राज्य सूचना आयोग भोपाल के आदेश में हुआ है।
आरटीआई के तहत जब यह जानकारी मांगी गई, तो तत्कालीन लोकसूचना अधिकारी प्रीति संघवी ने अधूरी और गलत जानकारी दी। इस पर मामला सूचना आयोग पहुंचा, जहां सुनवाई के दौरान आयोग ने अधिकारियों की लापरवाही पर कड़ी टिप्पणी की। आयुक्त डॉ. उमाशंकर पचौरी ने स्पष्ट रूप से कहा कि स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी पुस्तक का इस तरह गायब हो जाना सरकारी उदासीनता को दर्शाता है।
सूचना आयोग की सुनवाई के दौरान अपीलकर्ता कैलाश सनोलिया (विश्वकर्मा) ने अदालत में पुस्तक की एक प्रति पेश कर दी। साथ ही संपादक मंडल के सदस्य क्रांतिकुमार वैध को गवाह के रूप में उपस्थित किया, जिन्होंने पुष्टि की कि यह पुस्तक प्रकाशित हुई थी और उसमें उनकी ओर से सामग्री भी दी गई थी।
वहीं, संयुक्त कलेक्टर झाबुआ अक्षय सिंह मरकाम ने आयोग को बताया कि कलेक्टर कार्यालय में पुस्तक को खोजने के लिए एक टीम गठित की गई थी, लेकिन कोई दस्तावेज नहीं मिले। उन्होंने दावा किया कि संभवतः यह पुस्तक प्रकाशित ही नहीं हुई थी। हालांकि, अपीलकर्ता द्वारा पेश की गई प्रति और अन्य प्रमाणों ने इस दावे को गलत साबित कर दिया।
संयुक्त कलेक्टर को शोकॉज नोटिस, 25 हजार रुपये जुर्माने की चेतावनी...
आयोग ने अधिकारियों के गुमराह करने वाले जवाबों पर नाराजगी जताते हुए संयुक्त कलेक्टर अक्षय सिंह मरकाम को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। उन्हें 27 मार्च को भोपाल में आयोग के समक्ष पेश होकर स्पष्टीकरण देने के लिए कहा गया है।
इसके अलावा, तत्कालीन लोकसूचना अधिकारी प्रीति संघवी, जो वर्तमान में नीमच में संयुक्त कलेक्टर के पद पर हैं, पर भी गलत जानकारी देने और गुमराह करने का आरोप है। उन पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाने की चेतावनी दी गई है।
पुस्तक में अटल बिहारी वाजपेयी सहित कई प्रमुख हस्तियों के संदेश...
इस पुस्तक का ऐतिहासिक महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि इसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, राज्यपाल मंगुभाई पटेल और मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के संदेश प्रकाशित किए गए थे। आयोग ने इस पुस्तक के गायब होने को गंभीर लापरवाही करार दिया है।
स्वतंत्रता संग्राम के नायकों का अपमान...?
अपीलकर्ता ने यह भी बताया कि इस पुस्तक के पहले पेज पर अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कुसुमकांत जैन, लेखक मामा बालेश्वर दयाल और पूर्व राज्यसभा सदस्य कन्हैयालाल वैध की तस्वीरें प्रकाशित थीं। ऐसे में इस पुस्तक का गायब होना उन स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को भुलाने जैसा है।
अब देखना होगा कि 27 मार्च को सूचना आयोग की सुनवाई में क्या निष्कर्ष निकलता है और क्या प्रशासन इस ऐतिहासिक पुस्तक को खोजने में सफल होता है या नहीं।
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