संस्कृति, उल्लास और परंपराओं के संगम का प्रतिक भगाैरिया पर्व...
भगोरिया पर्व मध्यप्रदेश के भील, भिलाला और अन्य जनजातीय समुदायों का एक प्रमुख लोक उत्सव है। यह पर्व होली के पूर्व सप्ताहभर तक चलता है और मुख्य रूप से हाट (साप्ताहिक बाजार) के रूप में मनाया जाता है। भगोरिया केवल एक मेला नहीं, बल्कि यह समुदाय की संस्कृति, परंपरा और सामाजिक मेल-मिलाप का एक महत्वपूर्ण अवसर होता है।
भगोरिया का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व...
भगोरिया पर्व का इतिहास प्राचीन आदिवासी परंपराओं से जुड़ा है। मान्यता है कि इस पर्व की शुरुआत मालवा और निमाड़ क्षेत्र के तत्कालीन राजाओं द्वारा की गई थी। इस त्योहार को फसल कटाई के उत्सव के रूप में भी देखा जाता है, जहां लोग अच्छी फसल होने की खुशी में मेले का आयोजन करते हैं और सामूहिक रूप से आनंद मनाते हैं।
इस मेले का नाम "भगोरिया" पड़ने के पीछे भी एक ऐतिहासिक कारण है। कहा जाता है कि पहले यह उत्सव झाबुआ जिले के "भगौर" में विशेष रूप से मनाया जाता था, जिससे इसका नाम "भगोरिया" पड़ा।
भगोरिया हाट मेलों के रूप में विभिन्न गांवों में आयोजित किया जाता है। इस दौरान आदिवासी लोग पारंपरिक वेशभूषा पहनकर मेले में पहुंचते हैं। ढोल, मांदल और अन्य पारंपरिक वाद्ययंत्रों की गूंज से पूरा वातावरण संगीतमय हो जाता है। लोक नृत्य और पारंपरिक गीत इस पर्व की शोभा बढ़ाते हैं।
मेले में लोग अपनी जरूरत का सामान खरीदते हैं, घरेलू उपयोग की वस्तुएं, आभूषण और पारंपरिक हस्तशिल्प का भी लेन-देन होता है। इसके अलावा, यह मेलों का मौसम आपसी मिलन और सामाजिक संबंधों को मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है।
बहुत से बाहरी लोगों को यह भ्रांति होती है कि भगोरिया केवल एक प्रेम-प्रसंग से जुड़ा मेला है, लेकिन यह पूरी तरह से गलत है। वास्तव में, यह पर्व समुदाय की एकता, खुशी और परंपराओं का उत्सव है, जहां लोग अपने रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत रखते हैं।
भगोरिया पर्व केवल एक मेला नहीं, बल्कि यह आदिवासी समाज की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। यह उत्सव सदियों से समुदायों को जोड़ने और उनकी सांस्कृतिक विरासत को संजोने का माध्यम रहा है। इसे प्रेम और भागने के मिथकों से नहीं, बल्कि इसकी वास्तविक परंपराओं और सामूहिक उल्लास के रूप में देखना चाहिए।
बहुत सुंदर
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