तबादला महोत्सव 2025 - आवेदन ढेरों... जगह कम... सिफारिश जरूरी...

झाबुआ (ऋतिक विश्वकर्मा)। मध्यप्रदेश सरकार ने जैसे ही 31 मई तक तबादला प्रतिबंध हटाया, वैसे ही राज्य में तबादला महोत्सव की धूम मची हुई है... लगता है जैसे कर्मचारियों ने तबादले के लिए पूरे साल व्रत रखा हो और अब छुट्टी मिलते ही सबने आवेदन पत्रों की बौछार कर दी... कुल जमा 1.5 लाख आवेदन... लेकिन अफ़सोस, कुर्सियाँ तो सिर्फ़ 50 हज़ार ही हैं... बाक़ी लोग क्या करें...? शायद फिर से तीन साल का ‘योगासन’ कर लें वहीं की वहीं....

शिक्षा विभाग – हम ही क्यों...?

सबसे ज़्यादा भीड़ तो शिक्षा विभाग में है। 35,000 गुरुजन लाइन में हैं, लेकिन हर किसी की एक ही तमन्ना... भोपाल या फिर घर के पास... अब शिक्षा विभाग वालों से कोई पूछे, बच्चों की पढ़ाई का क्या होगा...? तो जवाब मिलेगा, पहले खुद की पढ़ाई (तबादले) पास हो जाए...

राजस्व और स्वास्थ्य विभाग – हम भी पीछे नहीं...

राजस्व विभाग के बाबू लोग 8,000 की संख्या में कतार में है, मानो तहसील छोड़ना कोई धर्म संकट हो। वहीं... स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टर-नर्स भी सोच रहे हैं — बीमार चाहे जहाँ हो, हम तो सिर्फ़ मनपसंद पोस्टिंग पर ही सेवा देंगे...

जनजातीय कार्य विभाग... तबादला नहीं, तंत्र का तमाशा...

जनजातीय कार्य विभाग की तबादला प्रक्रिया किसी रहस्य कथा से कम नहीं है... यहां तबादला सूची तभी बनती है जब मंत्री जी का मूड ठीक हो और ग्रह-नक्षत्र अनुकूल हों... लेकिन मंत्री जी के उपर अभी ग्रहण लगा हुआ है।

सूत्र बताते हैं कि विभागीय मंत्री और प्रशासनिक अफसरों के बीच ऐसा द्वंद्व चल रहा है कि तबादले की फाइलें ऊपर जाती हैं तो नीचे लौटते-लौटते उनका वजन आधा हो जाता है... विभाग में तबादला एक आधिकारिक प्रक्रिया नहीं... बल्कि भाग्यशाली कर्मचारियों का लॉटरी सिस्टम है...

भोपाल – कुर्सियों का ताजमहल

भोपाल में एक पोस्ट के लिए 40-40 आवेदन... लगता है जैसे सबको लग रहा है कि वहां की कुर्सियाँ मसाज चेयर है... अब कोई ये नहीं पूछता कि... काम क्या है...? बस कुर्सी चाहिए - वो भी राजधानी वाली...

तबादला नीति – कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा

सरकार ने नीति तो बना दी, लेकिन इतनी उलझी हुई है कि कर्मचारी समझ नहीं पा रहे कि... तबादले होंगे या बस आश्वासन...? कहीं लिखा है - पति-पत्नी साथ रहेंगे... कहीं लिखा है - संविदा वाले पहले त्यागपत्र दें फिर पांच साल का तप करें... कुल मिलाकर नीति ऐसी है जैसे... शादी के पहले हल्दी लगाओ, फिर देखो दूल्हा आए या नहीं...

सिफारिश तंत्र – बिना जुगाड़, सब बेकार

तबादले के लिए आवेदन तो ऑनलाइन हैं, लेकिन मंज़ूरी ऑफलाइन जुगाड़ पर है... विधायक, मंत्री, सांसद सबकी चिट्ठी जरूरी है... नहीं तो समझो कि आपका आवेदन फाइल में दबकर चाय की प्याली के नीचे रखा जाएगा... कुछ सांसदों ने तो अपने बंगले पर बोर्ड टांग दिया... तबादले के लिए संपर्क न करें, हम भी मजबूर है...

पारदर्शिता – सुनते हैं कुछ था ऐसा

सरकार कह रही है पारदर्शिता लाएंगे। QR कोड से तबादला ट्रैक होगा। अब कर्मचारी सोच रहे है - तबादले का QR कोड स्कैन करने से क्या निकलेगा... पोस्टिंग या पोस्टिंग का सपना...?

तबादलें का खेल है गजब... जीत उन्हीं की... जो हो सिफारिश में जबरदस्त...

1 जून से सूची आने वाली है, लेकिन कर्मचारी अब भी भगवान, मंत्री और जुगाड़ू मित्रों की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं। क्योंकि मध्यप्रदेश में तबादला अब सेवा नहीं, एक कला बन चुका है...

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