झाबुआ-नीमच के दो अफसरों पर गिरी गाज... चंद्रशेखर आजाद से जुड़ी पुस्तक छिपाना पड़ा महंगा, सूचना आयोग ने सुनाया सख्त फैसला...
झाबुआ/भोपाल। देश के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े गौरवशाली अतीत की उपेक्षा पर राज्य सूचना आयोग ने बड़ा कदम उठाया है। आरटीआई एक्टिविस्ट कैलाश सनोलिया (विश्वकर्मा) की अपील पर सुनवाई करते हुए मप्र राज्य सूचना आयोग ने झाबुआ और नीमच के दो अधिकारियों - संयुक्त कलेक्टर अक्षयसिंह मरकाम और पूर्व संयुक्त कलेक्टर श्रीमती प्रीति संघवी - पर पांच हजार रुपये की क्षतिपूर्ति राशि का आदेश सुनाया है।
पुस्तक का कवर पृष्ठ, जिसमें चंद्रशेखर आजाद समेत स्वतंत्रता सेनानियों की दुर्लभ छवियां प्रकाशित हैं।
यह मामला उस दुर्लभ पुस्तक से जुड़ा है, जो स्वतंत्रता संग्राम में झाबुआ जिले के योगदान को समर्पित है और जिसमें शहीद चंद्रशेखर आजाद की जन्मस्थली भाबरा सहित कई सेनानियों की स्मृतियां दर्ज हैं। पुस्तक का प्रकाशन वर्ष 1999 में "कबीर निधि" के माध्यम से झाबुआ कलेक्टर कार्यालय द्वारा किया गया था और इसका लोकार्पण 6 अगस्त 2000 को तत्कालीन प्रभारी मंत्री घनश्याम पाटीदार ने किया था।
RTI में मांगी गई थी ऐतिहासिक जानकारी
कैलाश सनोलिया ने अप्रैल 2022 में कलेक्टर कार्यालय झाबुआ से इस पुस्तक की प्रति, मुद्रण खर्च, लेखकों के पारिश्रमिक और संपादकीय समिति से जुड़ी जानकारी मांगी थी। लेकिन लोकसूचना अधिकारी के रूप में तैनात श्रीमती संघवी ने न केवल मूल पुस्तक की जगह कोई अन्य पुस्तक थमा दी, बल्कि अन्य जानकारियां देने से भी इंकार कर दिया।
झूठे दावे का खुलासा आयोग में हुआ
बाद में जब मामला सूचना आयोग तक पहुंचा, तो अधिकारियों ने तर्क दिया कि ऐसी कोई पुस्तक प्रकाशित ही नहीं हुई। लेकिन अपीलकर्ता ने इस दावे को चुनौती देते हुए पुस्तक प्रकाशन समिति के सदस्य वरिष्ठ पत्रकार क्रांति कुमार वैद्य को आयोग में प्रस्तुत किया। उन्होंने पुस्तक की असली प्रति पेश कर अधिकारियों का झूठ बेनकाब कर दिया।
सूचना आयोग की सख्त टिप्पणी
आयोग की खंडपीठ, जिसमें कमिश्नर डॉ. उमाशंकर पचौरी शामिल थे, ने माना कि दोनों अधिकारियों ने सूचना अधिकार कानून का गंभीर उल्लंघन किया। आयोग ने टिप्पणी की कि आवेदन को न केवल ग़ैरकानूनी तरीके से नकारा गया, बल्कि गलत जानकारी देकर आवेदक का समय, श्रम और धन भी बर्बाद किया गया। इसी आधार पर दोनों अफसरों को पांच हजार रुपये क्षतिपूर्ति देने का आदेश पारित हुआ।
पुस्तक का ऐतिहासिक महत्व
इस पुस्तक की विशेषता यह है कि इसके प्रथम पृष्ठ पर अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद, मामा बालेश्वर दयाल, कुसुमकांत जैन, कन्हैयालाल वैध जैसी महान विभूतियों की तस्वीरें प्रकाशित हैं। साथ ही, तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायण, प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, राज्यपाल डॉ. भाई महावीर और मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह के संदेश भी इसमें शामिल हैं।
फैसले की प्रति सनाेलिया के पास सुरक्षित
आयोग के निर्णय की प्रति कैलाश सनाेलिया के पास सुरक्षित है, जो यह दर्शाती है कि सूचना का अधिकार केवल दस्तावेज मांगने का जरिया नहीं, बल्कि प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही का सशक्त माध्यम है।
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