मेघनगर में जहर की धार - केमिकल प्रदूषण पर बेबस प्रशासन... मौन सरकार...
✍️ ऋतिक विश्वकर्मा, (स्वतंत्र पत्रकार)
झाबुआ जिले का मेघनगर, कभी शांत और हरियाली से भरपूर रहा क्षेत्र, अब जहरीले धुएं, दूषित नालों और अनदेखी की मिसाल बन चुका है। एक दशक से अधिक हो गया, लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं। केमिकल फैक्ट्रियों से उठते धुएं, जमीन में रिसता जहर और नदियों में बहता केमिकल - सब कुछ जानते हुए भी प्रशासन की चुप्पी अब सवाल खड़े करती है।
फाईल फाेटाे
पानी का रंग काला और लाल हो चला है, और मिट्टी में उपज कम होती जा रही है। अनास और पद्मावती जैसी नदियाँ अब जीवनदायिनी नहीं, बल्कि जहर का स्रोत बन चुकी हैं। मगर विडंबना देखिए - फैक्ट्रियाँ चल रही हैं, सरकार मौन है, और अवैधता निर्भीक।
AKVN (औद्योगिक विकास निगम) ने जिस विकास की नींव पर यह क्षेत्र तैयार किया था, वह अब विनाश की जमीन बनती जा रही है। ना पर्यावरणीय अनुमति की सख्ती, ना ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निगरानी। सब कुछ “नियंत्रण” के नाम पर सिर्फ कागज़ों में सिमट कर रह गया है।
2015 से अब तक कई बार ग्रामीणों ने विरोध किया, याचिकाएँ दायर की गईं, और मीडिया ने रिपोर्टिंग भी की - पर हर बार कार्रवाई "कुछ दिनों की दिखावे वाली मुहिम" बनकर रह गई। और फैक्ट्रियाँ...? वो फिर से चालू हो गईं।शिकायतें, अध्ययन, निष्कर्ष और जांच रिपोर्ट - सब कुछ मौजूद है, फिर भी कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं...? क्या जहर के खिलाफ भी "अनुमति" चाहिए...?
चिंता के मुख्य बिंदु...
- कई फैक्ट्रियाँ बिना पर्यावरणीय मंजुरी के चल रही हैं।
- जमीन के नीचे का जल पीने योग्य नहीं, फ्लोराइड, TDS और केमिकल की मात्रा अत्यधिक।
- पशु, मछलियाँ और पक्षी मर रहे हैं, बच्चों में बीमारियाँ पनप रही हैं।
- CETP (कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट) आज भी अधूरा है या नाममात्र का है।
- स्थानीय प्रशासन और MPPCB (मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) केवल जांच की खानापूर्ति करते हैं।
अब सवाल यह नहीं कि "कब कार्रवाई होगी...?"
सवाल ये है कि "कब तक नहीं होगी...?"
अब जरूरी है कि...
- NGT (राष्ट्रीय हरित अधिकरण) इस पूरे क्षेत्र को “इको-डिसास्टर जाेन” घोषित करे।
- सभी केमिकल फैक्ट्रियों की तत्काल ऑडिट हो और अवैध रूप से संचालित इकाइयाँ सील हों।
- प्रभावित गांवों को विशुद्ध पेयजल और स्वास्थ्य सुविधाएँ मुहैया कराई जाएँ।
- स्थायी CETP प्लांट को प्राथमिकता से चालू किया जाए और उसकी निगरानी जनप्रतिनिधियों और स्थानीय पत्रकारों की समिति द्वारा हो।
अंत में एक सवाल... जो हर झाबुआवासी की आंखों में तैर रहा है...
प्रशासन के आदेश और फैक्ट्रियों की जिद कब तक जिंदगी के बीच ये सौदा चलता रहेगा...?
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