पैसे, दवा और वादा - फिर सामने आई ईसाई बनाने की स्कीम... क्या झाबुआ के आदिवासियों की आस्था खरीदी जा रही है...?
✍️ ऋतिक विश्वकर्मा, (स्वतंत्र पत्रकार)
मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल जिले झाबुआ में एक बार फिर धर्मांतरण का मुद्दा गरमा गया है। हर कुछ महीनों में सुलगते इस मुद्दे ने जुलाई की शुरुआत में ही प्रशासन, समाज और मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है। इस बार चर्चा का केंद्र बना है थांदला क्षेत्र का पाटडी गांव, जहां एक व्यक्ति ने खुलेआम यह बयान दिया कि गांव के सभी लोगों को ईसाई बनाना है - हर व्यक्ति को 10,000 और अन्य लाभ मिलेंगे।
इस बयान ने ग्रामीणों के बीच न सिर्फ हलचल पैदा की, बल्कि हिंदू संगठनों को भी चौकन्ना कर दिया। मामला पुलिस के पास पहुँचा और अब जांच जारी है।धर्म बदलने की यह कैसी आजादी...?
पिछले कुछ वर्षों में झाबुआ जिले के कई इलाकों से यह खबरें लगातार आ रही हैं कि लोगों को इलाज, शिक्षा, पैसा या फिर निजी समस्याओं का समाधान कराने के बहाने धर्म बदलने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इनमें कई बार झोपड़ियों में गुपचुप प्रार्थना सभाएँ होती हैं, जिनका मकसद समाज सेवा के बजाय धर्मांतरण बताया जाता है।
ठीक ऐसा ही मामला सामने आया 2023 में धामंदा गांव में, जहां एक परिवार ने 9 साल बाद ईसाई धर्म छोड़ फिर से हिन्दू धर्म को अपनाया। वहीं, 2022 में गुलरीपाड़ा में 250 से अधिक आदिवासी ग्रामीणों ने कथावाचन के दौरान ‘घर वापसी’ की।
आज की घटना - लालच से धर्मांतरण की कोशिश...
थांदला के पाटडी गांव में धर्मांतरण की आज की घटना में रावजी पुत्र कानजी डामर नामक व्यक्ति का नाम सामने आया है, जिसने कथित तौर पर गांववालों को धर्म बदलने के बदले प्रति व्यक्ति 10,000 देने की बात कही। यह जानकारी स्थानीय निवासी ने पुलिस को दी और मामला तूल पकड़ गया।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि यह घटना अकेली नहीं है - बल्कि, यह उन घटनाओं की श्रृंखला का हिस्सा है, जो वर्षों से इस जिले में चलती आ रही हैं।
छांगुर बाबा गिरफ्तार - विदेश से फंडिंग का खुलासा
इसी बीच, एक और मामला सामने आया - जहाँ एक चर्च प्रचारक "छांगुर बाबा" को विदेशी फंडिंग के माध्यम से धर्मांतरण की योजना चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। शुरुआती जांच में पाया गया कि विदेशी पैसे से झाबुआ, आलीराजपुर और धार के कई क्षेत्रों में धार्मिक चंगाई सभाएँ आयोजित कराई जाती थीं, जिनमें कमजोर वर्गों को निशाना बनाया जाता था।
धर्मांतरण या सामाजिक असंतुलन...?
धार्मिक स्वतंत्रता हर व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार है, लेकिन जब धर्मांतरण भय, लालच या धोखे से हो - तो यह न सिर्फ क़ानून के विरुद्ध है बल्कि सामाजिक संतुलन के लिए भी खतरनाक है।
RSS की हाल की बैठक में यह चिंता खुलकर सामने आई, जहाँ धर्मांतरण और जनसंख्या संतुलन को लेकर गंभीर मंथन हुआ।
झाबुआ अब सिर्फ एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं रहा, यह अब धार्मिक विचारों के टकराव का केंद्र बनता जा रहा है। एक तरफ वे लोग हैं जो अपनी आस्था के नाम पर समाज सेवा का दावा करते हैं, और दूसरी ओर वे संगठन हैं जो इसे "आदिवासी संस्कृति पर हमला" मानते हैं।
सवाल यही है - धर्म का बदलना अधिकार है या व्यापार...?
जनजागरण की ज़रूरत
झाबुआ जैसे आदिवासी अंचलों में अक्सर धर्म के नाम पर दान, चिकित्सा, शिक्षा और आर्थिक सहायता देकर लोगों की मानसिकता बदली जाती है। इसके पीछे कई बार विदेशी फंडिंग और संगठित मिशनरी नेटवर्क भी सक्रिय पाए गए हैं।
ग्रामीणों और जागरूक नागरिकों का कहना है कि सरकार को गांव-गांव में जनजागरण अभियान चलाकर यह बताना चाहिए कि उनका धर्म और संस्कृति कोई सौदेबाजी की चीज नहीं।
क्या आपने अपने क्षेत्र में ऐसी कोई गतिविधि देखी है? हमें बताएं। ‘एमपी जनमत’ सच्चाई की तलाश में सदैव तत्पर है।
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